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'शख्सियत'

शख्सियत : लाला लाजपत राय

21-Nov-2018

By:  sachin



लाला लाजपात राय का निधन आज ही के दिन यानी 17 नवंबर 1928 को हुआ था। उनके निधन के मौके पर हम उनसे जुड़ीं कुछ खास बातें जानते हैं... परिचय लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को फिरोजपुर, पंजाब में हुआ था। उनके पिता मुंशी राधा कृष्ण आजाद फारसी और उर्दू के महान विद्वान थे। उनकी माता गुलाब देवी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। 1884 में उनके पिता का रोहतक ट्रांसफर हो गया और वह भी पिता के साथ आ गए। उनकी शादी 1877 में राधा देवी से हुई। शिक्षा उनके पिता राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रेवाड़ी में शिक्षक थे। वहीं से उन्होंने प्राथमिक शिक्षा हासिल की। लॉ की पढ़ाई के लिए उन्होंने 1880 में लाहौर स्थित सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया। 1886 में उनका परिवार हिसार शिफ्ट हो गया जहां उन्होंने लॉ की प्रैक्टिस की। 1888 और 1889 के नैशनल कांग्रेस के वार्षिक सत्रों के दौरान उन्होंने प्रतिनिधि के तौर पर हिस्सा लिया। हाई कोर्ट में वकालत करने के लिए 1892 में वह लाहौर चले गए। राष्ट्रवाद का जज्बा बचपन से ही उनके मन में देश सेवा का बड़ा शौक था और देश को विदेशी शासन से आजाद कराने का प्रण किया। कॉलेज के दिनों में वह देशभक्त शख्सियत और स्वतंत्रता सेनानियों जैसे लाल हंस राज और पंडित गुरु दत्त के संपर्क में आए। लाजपत राय देश को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारी रास्ता अपनाने के हिमायती थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नीति के वह खिलाफ थे। बिपिन चंद्र पाल, अरबिंदो घोष और बाल गंगाधर तिलक के साथ वह भी मानते थे कि कांग्रेस की पॉलिसी का नकारात्मक असर पड़ रहा है। उन्होंने पूर्ण स्वराज की वकालत की। राजनीतिक करियर लाजपत राय ने वकालत करना छोड़ दिया और देश को आजाद कराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। उन्होंने यह महसूस किया कि दुनिया के सामने ब्रिटिश शासन के अत्याचारों को रखना होगा ताकि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अन्य देशों का भी सहयोग मिल सके। इस सिलसिले में वह 1914 में ब्रिटेन गए और फिर 1917 में यूएसए गए। अक्टूबर, 1917 में उन्होंने न्यू यॉर्क में इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की। वह 1917 से 1920 तक अमेरिका में रहे। 1920 में जब अमेरिका से लौटे तो लाजपत राय को कलकत्ता में कांग्रेस के खास सत्र की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया। जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ उन्होंने पंजाब में ब्रिटिश शासन के खिलाफ उग्र आंदोलन किया। जब गांधीजी ने 1920 में असहयोग आंदोलन छेड़ा तो उन्होंने पंजाब में आंदोलन का नेतृत्व किया। जब गांधीजी ने चौरी चौरा घटना के बाद आंदोलन को वापस लेने का फैसला किया तो उन्होंने इस फैसले का विरोध किया। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी बनाई। निधन संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए 1929 में साइमन कमिशन भारत आया। कमिशन में कोई भारतीय प्रतिनिधि नहीं होने के कारण भारतीय नागरिकों का गुस्सा भड़क गया। देश भर में विरोध-प्रदर्शन होने लगा और लाला लाजपत राय विरोध प्रदर्शन में आगे-आगे थे। 30 अक्टूबर, 1928 की घटना है। लाजपत राय लाहौर में साइमन कमिशन के आने का विरोध करने के लिए एक शांतिपूर्ण जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे। पुलिस अधीक्षक जेम्स ए.स्कॉट ने मार्च को रोकने के लिए लाठी चार्ज का आदेश दे दिया। पुलिस ने खासतौर पर लाजपत राय को निशाना बनाया और उसकी छाती पर मारा। इस घटना के बाद लाला लाजपत राय बुरी तरह जख्मी हो गए। 17 नवंबर, 1928 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। उनके अनुयायियों ने इसके लिए पूरी तरह ब्रिटिश को दोषी ठहराया।


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    ऐसे ही एक कर्मवीर हैं ढोली बुआ पुल के वर्कशॉप पर पदस्थ वाहन चालक श्री अनिल राजपूत, इनका कार्य तो केवल वाहन चलाना है लेकिन इस वैश्विक संकट के बीच श्री राजपूत और इनके साथ ही इनके जैसे ही अनेक वाहन चालक ऐसे भी हैं, जो कचरा जैसे संक्रमण के वाहक को उठवा कर गलियों व मोहल्लों को संक्रमण के भय से मुक्ति दिलाते हैं और कचरा लैंडफिल साइट तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी के साथ निभा रहे हैं। इनके योगदान के बिना सफाई के कार्य को पूर्ण नहीं माना जा सकता है, क्योंकि कर्मवीर सफाई संरक्षक तो अपना कार्य ईमानदारी से करते हैं और वह प्रतिदिन सड़कों व गलियों की सफाई कर कचरे को एक स्थान पर एकत्रित कर देते हैं, लेकिन यदि यह कचरा समय पर नहीं उठें , तो यह क्षेत्र वासियों के लिए संक्रमण व दुर्गंध का कारण बनते हैं। तब यही हमारे कर्मवीर वाहन चालक कचरे को उठवा कर अपने वाहनों में भरकर लैंडफिल साइट तक पहुंचाने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जहां पर कचरे को वैज्ञानिक तरीके से डिस्पोजल किया जाता है। 
    श्री राजपूत बताते हैं कि वह प्रतिदिन सुबह 6:00 बजे अपने घर से निकलते हैं और देर शाम तक ही घर पहुंच पाते हैं तथा घर पर बच्चों व परिजनों से पूर्ण सैनिटाइज्ड एवं नहाने धोने के बाद भी एक निश्चित दूरी बनाकर ही मिलते हैं और देश व समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी इमानदारी से कर रहे हैं। 


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